राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती
परिवर्तन
(२)
ठाकुर खेतसिंह बड़े भारी इलाक़ेदार थे, सोलह हज़ार सालाना सरकारी लगान देते थे। दरवाज़े पर हाथी झूमा करता । घोड़े, गाड़ी, मोटर, और भी न जाने क्या-क्या उनके पास था । दो संतरी किरच बाँधे चौबीसों घंटे फाटक पर बने रहते । जब बाहर निकलते सदा दस-बीस लठैत जवान साथ होते। उस इलाके में न जाने कितने बैठे-बैठे मुफ़्त खा रहे थे और न जाने कितने मटियामेट हो रहे थे। पर इस पर टीका-टिप्पणी कर के कौन आफ़त मोल ले ? ठाकुर साहब का आतंक इलाके भर में छाया हुआ था। उनकी नादिरशाही को कौन नहीं जानता था ? किसी की सुन्दर बहू-बेटी ठाकुर साहब के नज़र तले पड़ भर जाय और उनकी तबीयत आ जाय, तो फिर चाहे आकाश-पाताल एक ही क्यों न करना पड़े, किसी न किसी तरह वह ठाकुर साहब के ज़नानखाने में पहुँच ही जाती थी। स्टेशन पर भी उनके गुर्गे लगे रहते, जो सदा इस बात की टोह में रहते कि कोई सुन्दरी स्त्री यहाँ पर आ जाय तो वह किसी प्रकार बहकाकर, धोखा देकर ठाकुर साहब के ज़नानखाने में दाखिल कर दी जाय। इसके लिए उन्हें इनाम दिया जाता । उड़ाया हुआ माल जिस क़ीमत का होता, इनाम भी उसी के अनुसार दिया जाता था ।
ठाकुर साहब के सब रिश्तेदार उनकी इन हरक़तों से उनसे नाराज़ रहते थे। प्रायः उनके घर का आना जाना छोड़-सा दिया था। किन्तु ठाकुर साहब अपनी वासना और धन के मद से इतने दीवाने हो रहे थे कि उनके घर कोई आवे चाहे न आवे उन्हें ज़रा भी परवाह न थी ।